निजी संपत्ति (ईरान की लोक कथा)

रान के शहंशाह अब्बास एक दिन जंगल में शिकार खेलने गए खेलते-खेलते वह रास्ता भटक गए।
जब वह रास्ते की खोज के लिए भटक रहे थे, तभी बादशाह को बंसी की आवाज सुनाई दी। वह उस स्थान
पर पहुंचे जहां से आवाज आ रही थी। देखाएक बालक मस्ती से बंसी बजा रहा था। कुछ दूर उसके
पशु चर रहे थे। 
बादशाह ने बालक का नाम और उसका ठिकाना पूछा। बातचीत के दौरान वह चरवाहे बालक की हाजिरजवाबी और प्रतिभा के कायल हो गए। उसे शाही दरबार में लाया गया। आगे चलकर वह एक रत्न सिद्ध हुआ। उसका
नाम था- मोहम्मद अली बेग।
बादशाह के बाद उसका अवयस्क पौत्र शाह सूफी तख्त पर बैठा कुछ
ही समय बीता। जासूसों ने शाह सूफी के कान भरे कि कोषाध्यक्ष मोहम्मद अली बेग शाही खजाने का दुरुपयोग
करता है। 
शाह उनकी बातों में आ गया। उसने मोहम्मद अली की हवेली का निरीक्षण किया वहां चारों ओर सादगी थी। निराश होकर शाह लौटने लगा कि तभी जासूसों के इशारे पर उसका ध्यान एक कक्ष की ओर गया, जिसमें तीन मजबूत ताले लटक रहे थे।
 'इसमें कौन से हीरे-जवाहरात मुहरें बंद कर रखे हैं, मोहम्मद ?’
 शाह ने पूछा।
 मोहम्मद अली सिर झुकाकर बोला "इसमें हीरे - जवाहरात मुहरों से भी कीमती चीजें हैं , जो मेरी निजी संपत्ति है । इस पर शाह ने मोहम्मद  को ताले खोलने को कहा । ताले  खोल दिए गये । कक्ष के बीचों बीच एक तख्त पर कुछ चीजें करीने  से रखी थीं - एक बंसी, सुराही , भात रखने की थैली , लाठी , चरवाहे की पोशाक और दो मोटे ऊनी कंबल । मोहम्मद बोला - 'यही हैं मेरे हीरे जवाहरात,
 बादशाह जब मुझे पहली बार मिले थे , तब मेरे पास यही चीजें थीं । आज भी निजी कहने को मेरी यही संपत्ति है । ’
 बादशाह लज्जित होकर लौट गया ।

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