गीदड़ और गीदड़ी (राजस्थान की लोककथा)

               राजस्थान के गांवों में दादी -नानी कई लोक कथाएं सुनाती है जिससे बालक हंसते- हँसते लोट -पोट हो जाते हैं तो किसी दु:खान्त कथा को सुनकर वे गमगीन बन  जाते हैं । 
                  ये छोटी - छोटी कथाएँ बालकों के मनों पर सदैव के लिए अंकित हो जाती हैं । कथा सुनाते वक्त वृद्धा बालकों के साथ विनोद भी करती जाती है ,जब उसे बच्चों को टालना होता है तो वह कहती है -
का’णी कैवे कागलो , हुंकारी देवै मइया , आंधलिये नैं चोर लेग्या , भाग रे पांगळिया ॥
और कथा समाप्त करने पर पर अपने किसी नन्हें पोतों का नाम लेकर कहती है -
ओड का’णी , मुंगा राणी , मुंग पुराणा , नंदू के सासरे का नाई बामण से काणा । '
रात के समय घर के काम - काज से निवृत्त होने पर कथाएं कही जाती है । यदि कोई बालक अपनी माँ से दिन में कथा कहने का आग्रह करता है तो माँ यह कह कर बच्चे को टाल देती है कि दिन में कथा कहने से मामा रास्ता भूल जाता है ।
गीदड़ और गीदड़ी (राजस्थान की लोककथा)
          क गीदड़ और गीदड़ी पानी पीने के लिए तालाब पर गये । वे दोनों बहुत प्यासे , लेकिन तालाब के किनारे एक शेर बैठा था । शेर को देख कर दोनों वहीं ठिठक गये और पानी पीने की कोई तरकीब सोचने लगे । सोचते - सोचते उन्हें एक युक्ति सूझी और वे दोनों सिंह के पास गये ।
               सियारी ने सिंह से कहा कि जेठजी , हमारा न्याय आप कर दीजिए । हमारे तीन बच्चे हैं सो दो बच्चे में रखना चाहती । और एक बच्चा इसे देना चाहती हूँ । लेकिन यह दो बच्चे स्वयं लेना चाहता है और एक मुझे देना चाहता है । भला आप ही बतलाइये कि मैं एक बच्चा कैसे ले लूँ? 
                मैंने ही उन्हें जन्म दिया है , मैंने ही उन्हें पाला- पोसा है । उधर गीदड़ भी दो बच्चों की माँग कर रहा था । तब सियारी ने कहा कि मैं तीनों बच्चों को यहीं ले आती हूँ , जेठजी जैसा उचित समझें कर दें । यों कह कर सियारी पानी पीकर चलती बनी । सिंह ने सोचा कि सियारी तीनों बच्चों को ले आये तो पूरा कलेवा बन जाएगा ।                         लेकिन बहुत देर बीत जाने पर भी जब सियारी नहीं आयी तो सियार ने सिंह से कहा कि हुजूर , वह कुलटा अभी तक नहीं लौटी है , जरूर उसकी नीयत में फरक है । वह निच स्वयं दो बच्चे लेना चाहती है , मैं अभी उसे घसीट कर लाता हूँ, यों कह कर गीदड़ भी पानी पी कर चलता बना । 
                कुछ देर तक तो सिंह वहीं प्रतीक्षा करता रहा , लेकिन जब उसे भूख अधिक सताने लगी तो सियार -सियारी का न्याय करने के लिए वह उनकी ‘ घूरी' पर स्वयं गया और उसने पुकार कर गीदड़ से कहा कि अपने बच्चों को लेकर जल्दी बाहर आ जाओ , तुम्हारा न्याय कर दूँ, मुझे देर हो रही है । 
                   सिंह की बात सुनकर सियारी ने अन्दर से ही कहा कि -"जेठजी , आपने यहाँ आने की तकलीफ क्यों उठाई ? हम तो ‘ घर के घर में ही सलट लिये यह निपूता कहता है कि मैं दो बच्चे ही लूगा सो क्या करु , दो बच्चे इसे दे दूँगी , मैं एक ही रख लूँगी ।
 सियारी की बात सुनकर सिंह अपना सा मुंह लेकर चला गया । घर का घर में सलट लिया मामला तो   ।

Comments

  1. badhiya kahani hai .....kripya is kahani ko bhi padhen......किसी जमाने की बात है . एक आदमी था . उसका नाम था चंद्रनारायण . वह स्वयं तो देवलोक में रहता था, किंतु उसकी मां और स्त्री इसी लोक में रहती थीं .चंद्रनारायण सवा मन कंचन इन दोनों को देता था और सवा मन सारी प्रजा को. प्रजा चैन से दिन काट रही थी, किंतु मां-बहू के दिन बड़ी मुश्किल से गुजर रहे थे. दोनों दिनोंदिन सूखती जा रही थीं......https://www.hindibeststory.com/lok-katha/

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