लोककथा- सिकन्दर और चोर
एक बार सिकन्दर के फौजी पड़ाव में एक चोर ने रात को
एक बार सिकन्दर के फौजी पड़ाव में एक चोर ने रात को
'चोरी करने का प्रयास किया।
सिकन्दर के सैनिक हर वक्त
सिकन्दर के सैनिक हर वक्त
सजग रहते थे। इसलिए उन्होंने पूरी
मुस्तैदी दिखाते हुए उसे पकड़
लिया। सुबह सैनिकों ने उसे
सिकन्दर के सामने पेश किया।
मुस्तैदी दिखाते हुए उसे पकड़
लिया। सुबह सैनिकों ने उसे
सिकन्दर के सामने पेश किया।
सिकन्दर हैरान था कि आखिर
किसने ऐसी हिम्मत की सिकन्दर
ने कड़क कर उससे कहा‘तुम
कैसे बदतमीज हो? कैसे अनैतिक
व्यक्ति हो, जो चोरी करने जैसा
घृणित काम करते हो।' यह सुनकर
चोर बिना डरे बोला‘आपको
मुझसे ऐसा व्यवहार नहीं करना
चाहिए। जैसा एक बड़ा भाई छोटे
भाई के साथ व्यवहार करता है,
वैसा व्यवहार करें।सिकन्दर ने कहा‘तू मेरा छोटा भाई कैसे हो सकता है? '
चोर बोला, ‘तुम बड़े चोर हो, तुम्हारे पास ताकत है।
इसलिए दुनिया तुम्हें मानती है। हम छोटे चोर हैं, हमारी शक्ति कम है।
इसलिए हम छोटी-मोटी चोरी करते हैं।
जिस कारण दुनिया हमें मानती नहीं, बल्कि दंडित करती है।
तुम भी करते वही हो, जो हम करते हैं। तुम बड़े डाके डालते हो।
तुम डाके न डालो तो राजा कैसे बनोगे?
राजन न्याय सभी के लिए समान होना चाहिए।
जो गलत है, अनैतिक है, उसका विरोध प्रत्येक स्तर पर होना चाहिए।’
चोर की बात सुनकर सिकन्दर बहुत लज्जित हुआ।
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