लोमड़ी और सारस (रूस की लोक कथा)

क बार एक लोमड़ी और एक सारस अच्छे मित्र बन
गये । एक दिन लोमड़ी ने सारस को खाने पर बुलाने का
निश्चय किया।
'मेरे प्यारे मित्र , तुम कल मेरे घर आओ" लोमड़ी ने
कहा। 
" मैं तुम्हें बहुत मजेदार खाना खिलाऊंगी।"
सो दूसरे दिन सारस दावत खाने के लिए गया। 
लोमड़ी ने सूजी का थोड़ा-सा दलिया बनाया और एक तश्तरी में -डाल कर रख दिया। 
दलिया पेश करते हुए उसने अपने मेहमान से कहा :
"लो , खाओ, मेरे दोस्त । मैंने खुद इसे तैयार किया है ।"

सारस ने बार-बार उस तश्तरी में अपनी चोंच मारी
मगर वह थोड़ा-सा दलिया भी न खा सका। 
और  उतनी देर में लोमड़ी उस दलिये को चाटते चाटते चट कर गयी।
तब उसने कहा :
बुरा न मानना मेरे प्यारे मित्र , पर मेरे पास तुम्हारे
सामने पेश करने के लिए अब और कुछ नहीं है ।"
सारस ने जवाब दिया :
" इसके लिए भी तुम्हारा शुक्रिया। कल तुम मेरे  यहां  आना।"
दूसरे दिन लोमड़ी सारस के घर पहुंची।
 सारस ने खाने के लिए कुछ शोरबा बनाया, एक तंग मुंह की सुराही में
डाल कर पेश किया और लोमड़ी से कहा :
" शुरू करो मेरी प्यारी बहन , मेरे पास तो बस , यही
कुछ है। "
लोमड़ी ने एक तरफ़ से सुराही पर नजर डाली और
दूसरी तरफ़ से उसे घूरा । फिर चाटा और सूंघा । लेकिन किसी
तरह भी उस में मुंह न डाल सकी, शोरबा न खा सकी।
सुराही के मुंह की तुलना में उसकी थूथनी कहीं बड़ी थी।
उधर सारस बड़े मजे से खाता रहा । यहां तक कि सुराही
में कुछ भी बाकी न रहा ।
" मुझे बहुत अफसोस है , मेरी प्यारी , मगर मेरे पास
तुम्हारे सामने पेश करने के लिए और कुछ भी नहीं है ।"
लोमड़ी को मन ही मन बहुत गुस्सा आया। उसने सोचा
था कि वह इतना खायेगी , इतना खायेगी कि हफ्ते भर की
छूट्टी हो जायेगी। मगर वह अपना-सा मुंह से कर लौट गयी।
जैसे को तैसा मिला।
पर इसके बाद लोमड़ी और सारस की दोस्ती हमेशा   के लिए   खत्म हो
गयी।

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