कंजूसी का फल (भोपाल की लोक कथा )

हुत पुरानी बात है , किसी गांव में एक जमींदार रहता था । वह बहुत कंजूस था । 
वह अपने खेत जोतने के काम में जिसे रखता वह कुछ समय बाद ही काम छोड़कर भाग जाता था । क्योंकि जमीन जोतना , बीज बोना , पानी देना , इन सब कामों के लिये वह केवल खाने भर को ही देता था । फसल कट जाने पर वह खाने को भी नहीं देता था । 
इस जमींदार की कंजूसी के बारे में सारे गांव में चर्चा थी , एक समय ऐसा आया कि उसे खेतों पर काम करने के लिये आदमी मिलना मुश्किल हो गये । वह जिसे भी काम पर रखने की कोशिश करता , वही दुगने पैसे मांगता 

                          उसी गांव में श्याम नामक एक बुद्धिमान लड़का रहता था । उसने जब उस कंजूस जमींदार के बारे में सुना तो उसने उसे सबक सिखाने की सोची । वह एक आदमी को साथ लेकर जमींदार के पास पहुंचा जमींदार ने उन्हें बैठने को कहा और उनसे आने का कारण पूछा । श्याम ने बताया कि वह उसके खेतों पर काम करना चाहता है । 
इस पर जमींदार बोला - “ तुम्हें पूरे साल काम करना पड़ेगा । बीच में भागोगे तो नहीं 
 "तो तुम क्या दोगे ? यह बताओ , तभी मैं बताऊंगा । ” -श्याम ने जवाब दिया

जमींदार बोला-
"यह बात तो मैं तुम्हारा काम देखकर ही तय करूंगा । अगर अच्छा काम करोगे तो साल में बारह किलोग्राम चावल ढूंगा । अगर नहीं तो नौ -दस किलोग्राम ही ढूंगा । कपड़े लत्ते भी मिलेंगे ।

उसकी बात सुनकर श्याम बोला - " अब आप मेरी भी शर्त सुन लें । मुझे मालूम है कि आप मजदूरों को कम खाना तथा कम मजदूरी देते हैं , इससे वे काम छोड़कर भाग जाते हैं । आप साल में मुझे एक बीज धान का देना जिसे नीची जमीन में मैं खुद लगाऊंगा । एक बीज गेहूं का देना जिसे मैं ऊंची जमीन में लगाऊंगा । पहनने को कपड़े देना । प्रतिदिन एक पत्तल चावल खाने को देना , एक पतल से अधिक नहीं माँगूँगा ।
इसके बाद अगर मैं  दम भर काम न करु तो मेरा हाथ काट लेना  तुम शर्त के विरुद्ध काम करोगे तो मैं तुम्हारा हाथ ढूंगा काट,बोलो मंजूर  है ? 

                     जमींदार को भला इसमें क्या आपत्ति हो सकती थी , उसने उसकी शर्त मान ली । 
श्याम ने मजदूरी करनी शुरू कर दी । जब वह खाना लेने के लिए हाजिर हुआ तो एक लम्बा - चौड़ा केले का पत्ता  लेकर हाजिर हुआ । 
                     जमींदार ने जब केले का पत्ता देखा तो वह गुस्से में लाल होकर बोला - "तूम केले के पत्ते में चावल खाओगे ? समझ क्या रखा है ।
                  पर मालिक शर्त तो यही थी ना ? " श्याम मुस्कुराकर बोला ।
 " हां , यही थी । " जमींदार ने झुंझलाकर उत्तर दिया । 
                    विवश होकर उसे केले के पते में ही चावल देने पड़े । अब तो वह रोज ही केले के पत्ते में चावल खाता ।
रसोइये ने  भी जमींदार से कहा  -" यह तो अजीब बात , चावल बनाते बनाते हालत खराब है । हुजूर यह आप किस तरह के आदमी को पकड़ लाये हैं, दस- दस आदमियों के चावल अकेले ही खा जाता है । 

                 "अरे दस आदमियों के बराबर का काम भी तो करता है । " जमींदार ने उत्तर दिया ।
              यह बात सही थी कि श्याम काम में कोई कंजूसी नहीं करता था । वह सारे काम को अपने हाथों से पूरा करता । 
                            मजदूरी में वह एक गेहूं का दाना लेता । उसने मालिक से कहा - " मालिक , मैंने इस गोबर के ढेर में गेहूं बो दिया है । " धान का बीज उसने नीची जमीन में बो दिया । गेहूं के पौधे में अनेक दाने निकले उसी प्रकार धान के पौधे में भी अनेक दाने निकले । 
                 श्याम ने उन सभी को बीज के रूप में रख छोड़ा । दूसरे साल भी धान व गेहूं के खूब पौधे हुए । इसके अलावा उसे मजदूरी के रूप में एक -एक बीज अलग से मिला । उन बीजों को भी उसने अगले साल के लिये रख  छोड़ा । धान बोने के लिये उसे शर्त के अनुसार नीची जमीन तथा गेहूं बोने के लिये ऊंची जमीन मिली । 
                                                       इस तरह छः साल के अन्दर मालिक के हाथों से सारी जमीन निकल 
गयी । श्याम ने नीचे की जमीन पर धान के पौधे लगा रखे थे तथा ऊपर गेहूं के ।
                   अंत में जमींदार ने पंचायत के आगे जाकर शिकायत की । श्याम भी वहां हाजिर हुआ । 
                                    गांव वालों ने श्याम को समझाते हुए कहा कि इस बार जमींदार को माफ कर दो उसे खूब दण्ड मिला है ।
                    श्याम ने कहा - " इन्होंने गरीबों को सताया है , उन्हें भरपेट खाना तक नहीं दिया । दण्ड तो इन्हें मिलना ही था । 
                  अरे नहीं , इनको थोड़ी - सी जमीन तो दे ही दो । ” पंचों ने श्याम को समझाया ।
                               "ठीक है ये अपना हाथ काट दें । ” श्याम बोला ।
                               " नहीं - नहीं मैं अपना हाथ नहीं काटूगा । " जमींदार बोला ।
 श्याम को जमींदार  पर दया आ गयी । उसने आधी जमीन उसे दे दी । 
उस दिन से जमींदार एकदम बदल गया । अब वह सभी मजदूरों के साथ अच्छा व्यवहार करता तथा उन्हें भरपेट खाना और उचित मजदूरी देता । गांव के लोग श्याम की सूझ-बूझ की प्रशंसा किये नहीं थकते थे ।

                                                                                                                                               ▓ ▓ 

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