सजदा (अफगानिस्तान की लोक कथा )

जो सजदे में लगे रहते है ,
                 परमात्मा ऊनकी रक्षा भी करते रहते है।
व्यर्थ की चिन्ता  छोड़े , अहंकार छोड़े ,
           बाकी तुम्हारा ध्यान  तो वो रखता ही है।
                 शुक्र है दातेया ,शुक्र.है!
*वो सज़दे का वक़्त*


*एक बुजुर्ग दरिया के किनारे पर जा रहे थे। एक जगह देखा कि दरिया की सतह से एक कछुआ निकला और पानी के किनारे पर आ गया। उसी किनारे से एक बड़े ही जहरीले बिच्छु ने दरिया के अन्दर छलांग लगाई और कछुए की पीठ पर सवार हो गया। कछुए ने तैरना शुरू कर दिया। वह बुजुर्ग बड़े हैरान हुए।*
   *उन्होंने उस कछुए का पीछा करने की ठान ली।
इसलिए दरिया में तैर कर उस कछुए का पीछा किया। वह कछुआ दरिया के दूसरे किनारे पर जाकर रूक गया। और बिच्छू उसकी पीठ से छलांग लगाकर दूसरे किनारे पर चढ़ गया और आगे चलना शरू कर दिया। वह बुजुर्ग भी उसके पीछे चलते रहे। आगे जाकर देखा कि जिस तरफ बिच्छू जा रहा था उसके रास्ते में एक मालिक का बन्दा बड़े ध्यान में आँखे बन्द कर मालिक की याद में सज़दे में लगा हुआ था।*
*उस बुजुर्ग ने सोचा कि अगर यह बिच्छू उस नौजवान को काटना चाहेगा तो मैं करीब पहुंचने से पहले ही उसे अपनी लाठी से मार डालूंगा। लेकिन वह चंद कदम आगे बढे ही थे कि उन्होंने देखा दूसरी तरफ से एक काला जहरीला साँप तेजी से उस नौजवान को डसने के लिए आगे बढ़ रहा था। इतने में बिच्छू भी वहां पहुंच गया।*
*उस बिच्छू ने ऐन उसी हालत में सांप को डंक के ऊपर डंक मार कर उसे बेसुध कर दिया ,जिसकी वजह से बिच्छू का जहर सांप के जिस्म में दाखिल हो गया और वह सांप वहीं अचेत हो कर गिर पड़ा था। इसके बाद वह बिच्छू अपने रास्ते पर वापस चला गया।*
*थोड़ी देर बाद जब मालिक का बन्दा उठा, तब उस बुजुर्ग ने उसे बताया कि मालिक ने तेरी हिफाजत के लिए कैसे उस कछुवे को दरिया के किनारे लाया , फिर कैसे उस बिच्छु को कछुए की पीठ पर बैठा कर साँप से तेरी रक्षा के लिए भेजा ।*
*वह ...मालिक का प्यारा उस अचेत पड़े सांप को देखकर हैरान रह गया। उसकी आंखों से आंसू निकल आए।*
*और वह आँखें बन्द कर अपने मालिक को याद कर शुक्र अदा करने लगा,
 तभी मालिक ने उस बन्दे से कहा -
जब वो बुजुर्ग जो तुम्हे जानता तक नही था वो तेरी जान बचाने के लिए लाठी उठा सकता है । और फिर तू तो मेरे काम में लगा हुआ था तो फिर तुझे बचाने के लिये मेरी लाठी तो हमेशा से ही तैयार रहती है।*
*वाह रे मालिक तेरी मौज*
*शुकर है , शुकर है , शुकर ही शुकर है मेरे दाता*
जी ...

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